रविवार, 23 मार्च 2025 को तुर्की की राजनीति में बड़ा भूचाल आ गया। इस्तांबुल की एक अदालत ने राष्ट्रपति तैयप एर्दोगन के मुख्य प्रतिद्वंद्वी और इस्तांबुल के मेयर एक्रेम इमामोग्लू को भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल की सजा सुना दी। इस फैसले के तुरंत बाद देशभर में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए, जो पिछले एक दशक में तुर्की का सबसे बड़ा जनआंदोलन बन गया है। इमामोग्लू की गिरफ्तारी को विपक्षी पार्टियों, यूरोपीय नेताओं और लाखों प्रदर्शनकारियों ने राजनीतिक साजिश और अलोकतांत्रिक कार्रवाई बताया है। इस्तांबुल, अंकारा, इज़मिर समेत कई प्रमुख शहरों की सड़कों पर विरोध की लहर दौड़ पड़ी है।
एक्रेम इमामोग्लू कौन हैं?
एक्रेम इमामोग्लू तुर्की की मुख्य विपक्षी पार्टी सीएचपी (रिपब्लिकन पीपुल्स पार्टी) से जुड़े हैं। वे 2019 में इस्तांबुल के मेयर चुने गए और 2024 में दोबारा इस पद पर जीत दर्ज की। इस्तांबुल तुर्की का सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण शहर है, जिसकी आबादी करीब 1.6 करोड़ है। इसे तुर्की का व्यापारिक और सांस्कृतिक केंद्र माना जाता है। इमामोग्लू की लोकप्रियता लगातार बढ़ती रही है और वे राष्ट्रपति एर्दोगन के सबसे बड़े राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी के रूप में उभरे हैं।
क्या हैं इमामोग्लू पर आरोप?
19 मार्च 2025 को इमामोग्लू को हिरासत में लिया गया। उनके खिलाफ आरोप लगाए गए कि उन्होंने एक कुर्द समर्थक पार्टी के साथ चुनावी गठबंधन किया। अधिकारियों का दावा है कि इस पार्टी के संबंध प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी (PKK) से हैं।
इमामोग्लू पर आरोप हैं कि उन्होंने:
✅ एक आपराधिक संगठन की स्थापना और नेतृत्व किया।
✅ रिश्वत ली और भ्रष्टाचार किया।
✅ अवैध रूप से व्यक्तिगत डेटा रिकॉर्ड किया।
✅ अनुबंधों में झूठे समझौते किए।
इसके चलते उन्हें मेयर के पद से हटा दिया गया और सीधे जेल भेज दिया गया।
चुनाव से पहले ही विपक्ष पर कार्रवाई
इमामोग्लू को राष्ट्रपति एर्दोगन को चुनौती देने वाले सबसे मजबूत विपक्षी नेता माना जाता है। मार्च 2024 के स्थानीय चुनावों में सीएचपी ने 81 प्रांतीय राजधानियों में से 35 पर कब्जा किया, जिसमें अंकारा, इज़मिर, अंताल्या और बर्सा जैसे बड़े शहर शामिल थे। विश्लेषकों का मानना है कि एर्दोगन इमामोग्लू की बढ़ती लोकप्रियता से घबराए हुए हैं। 23 मार्च को जब सीएचपी उन्हें 2028 के राष्ट्रपति चुनाव के लिए उम्मीदवार घोषित करने जा रही थी, उसी दिन उनकी गिरफ्तारी कर दी गई। गिरफ्तारी से पहले उनकी डिग्री रद्द कर दी गई, जबकि तुर्की के संविधान के तहत राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के पास उच्च शिक्षा की डिग्री का होना अनिवार्य है।
12 साल बाद तुर्की में सबसे बड़ा विरोध प्रदर्शन
इमामोग्लू की गिरफ्तारी ने तुर्की को 2013 के गेजी पार्क विरोध के बाद सबसे बड़े आंदोलन की आग में झोंक दिया। इस बार भी लाखों लोग सड़कों पर उतर आए हैं। इस्तांबुल में शुक्रवार और शनिवार की शाम को भारी भीड़ जमा हुई। अंकारा, इज़मिर सहित कई शहरों में प्रदर्शन तेज़ हो गए। तुर्की के 81 प्रांतों में से 55 में रैलियां हुईं। लोगों का आरोप है कि यह गिरफ्तारी लोकतंत्र की हत्या है और एर्दोगन एक बार फिर तानाशाही के रास्ते पर चल पड़े हैं।
क्या यह तुर्की की राजनीति में बदलाव का संकेत है?
इमामोग्लू की गिरफ्तारी ने तुर्की में राजनीतिक भूचाल ला दिया है। यूरोपीय यूनियन और अमेरिका ने इस गिरफ्तारी को लोकतंत्र के खिलाफ करार दिया है। प्रदर्शनकारी 'न्याय' और 'लोकतंत्र' की बहाली की मांग कर रहे हैं। सीएचपी ने इमामोग्लू की रिहाई तक विरोध प्रदर्शन जारी रखने का ऐलान किया है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर स्थिति संभाली नहीं गई, तो यह एर्दोगन शासन के अंत की शुरुआत हो सकती है।
निष्कर्ष
तुर्की में 23 मार्च 2025 को शुरू हुए विरोध प्रदर्शन तुर्की की राजनीति के भविष्य को तय कर सकते हैं। एक्रेम इमामोग्लू की गिरफ्तारी ने तुर्की को फिर से लोकतंत्र और तानाशाही के बीच खड़ा कर दिया है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में तुर्की की जनता किस ओर रुख करती है।