हाल ही में अमेरिका में ट्रंप प्रशासन द्वारा एक बड़ा और विवादास्पद कदम उठाया गया है। 1,000 से ज्यादा विदेशी छात्रों के वीजा रद्द कर दिए गए हैं, जिससे न सिर्फ अमेरिकी शिक्षा प्रणाली पर सवाल उठे हैं बल्कि अमेरिका में अध्ययन कर रहे लाखों अंतरराष्ट्रीय छात्रों में डर और अनिश्चितता का माहौल भी पैदा हो गया है। इन छात्रों में से कई का कहना है कि उन्होंने कोई कानून नहीं तोड़ा और बिना किसी पूर्व सूचना या ठोस कारण के उनके वीजा रद्द कर दिए गए हैं।
विदेशी छात्रों को निशाना बनाए जाने का आरोप
ट्रंप प्रशासन के इस कदम को आलोचकों ने राजनीतिक और वैचारिक दबाव से प्रेरित बताया है। रिपोर्टों के अनुसार, 160 से ज्यादा विश्वविद्यालयों के 1,024 से अधिक छात्रों के वीजा रद्द किए गए हैं या उनकी कानूनी स्थिति को समाप्त कर दिया गया है। इनमें से कई छात्रों ने अपनी बात रखने के लिए सार्वजनिक मंचों का सहारा लिया था—चाहे वो अमेरिका की आव्रजन नीतियों के खिलाफ हों या अन्य राजनीतिक विषयों पर।
छात्रों का आरोप है कि यह कदम उनके विचारों को दबाने की रणनीति है। उनके अनुसार, यह न केवल उनके शिक्षा के अधिकार पर हमला है बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भी सीधा प्रहार है।
विश्वविद्यालयों ने जताई चिंता
टॉप अमेरिकी विश्वविद्यालयों जैसे हार्वर्ड, स्टैनफोर्ड, मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT), यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड और ओहायो स्टेट यूनिवर्सिटी ने इन घटनाओं को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की है। MIT ने बताया कि उनके नौ अंतरराष्ट्रीय छात्रों और शोधकर्ताओं के वीजा बिना किसी पूर्व चेतावनी के रद्द कर दिए गए। इन संस्थानों का कहना है कि अमेरिका की शिक्षा व्यवस्था की अंतरराष्ट्रीय साख को इससे गहरी चोट पहुंची है।
अमेरिकन काउंसिल ऑन एजुकेशन की उपाध्यक्ष सारा स्प्रेटजर ने कहा कि यह एक असामान्य स्थिति है, जिसमें छात्रों को उनके घरों से सार्वजनिक रूप से निकाला जा रहा है—ऐसी घटनाएं पहले कभी नहीं देखी गईं।
वीजा रद्द करने का कोई स्पष्ट कारण नहीं
विदेशी छात्रों और उनके वकीलों का कहना है कि उन्हें अपने वीजा रद्द होने का कोई स्पष्ट कारण नहीं बताया गया। कुछ मामलों में छात्रों को मामूली प्रशासनिक भूलों के लिए भी कठोर दंड दिया गया। ACLU (अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन) के वकीलों का कहना है कि यह सरकार की एक योजनाबद्ध नीति का हिस्सा है, जो अमेरिका को “विदेशियों के लिए कम आकर्षक” बनाने की दिशा में बढ़ रही है।
इस नीति के पीछे ट्रंप प्रशासन की इमिग्रेशन नीति को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, जिसमें कानूनी तौर पर आए लोगों को भी परेशान करने की रणनीति अपनाई जा रही है।
गिरफ्तारी और निर्वासन का खतरा
पहले की नीतियों के तहत, अगर किसी छात्र का वीजा रद्द हो जाता था, तो भी उसे अपनी पढ़ाई पूरी करने का मौका दिया जाता था। लेकिन अब, स्थिति बिल्कुल अलग है। इमिग्रेशन और कस्टम्स एनफोर्समेंट (ICE) अधिकारी वीजा रद्द होने के तुरंत बाद छात्रों को गिरफ्तार कर सकते हैं और उन्हें निर्वासित किया जा सकता है।
इससे छात्रों में दहशत का माहौल बन गया है। वे न केवल अपनी पढ़ाई के भविष्य को लेकर चिंतित हैं बल्कि अपनी सुरक्षा को लेकर भी आशंकित हैं। कुछ छात्र तो अब सार्वजनिक रूप से बोलने से भी डरने लगे हैं कि कहीं उनकी किसी गतिविधि को वीजा उल्लंघन न मान लिया जाए।
कानूनी लड़ाई की शुरुआत
कई छात्रों और उनके परिवारों ने इस फैसले के खिलाफ कोर्ट का रुख किया है। उनका कहना है कि यह कदम बिना उचित प्रक्रिया के उठाया गया है और यह उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है। उन्होंने गृह सुरक्षा विभाग (DHS) के खिलाफ मुकदमे दायर किए हैं और मांग की है कि या तो उनके वीजा बहाल किए जाएं या उन्हें निष्पक्ष सुनवाई का मौका दिया जाए।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना
इस फैसले की आलोचना सिर्फ अमेरिका में नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी हो रही है। भारत, चीन, दक्षिण कोरिया और अन्य देशों से आए छात्रों को निशाना बनाए जाने के आरोप लगे हैं। भारत सरकार ने भी अमेरिकी अधिकारियों से संपर्क कर इन मामलों में पारदर्शिता और न्याय की मांग की है।
निष्कर्ष
अमेरिका में विदेशी छात्रों के लिए हालात तेजी से बदल रहे हैं। जहां पहले यह देश उच्च शिक्षा के लिए सबसे पसंदीदा माना जाता था, वहीं अब यहां की इमिग्रेशन नीतियों ने एक भय और अस्थिरता का माहौल पैदा कर दिया है। ट्रंप प्रशासन द्वारा लिए गए इन कठोर फैसलों से अमेरिका की वैश्विक शैक्षणिक छवि को गहरी चोट पहुंची है। अब देखना यह होगा कि कोर्ट में चल रही कानूनी लड़ाई किस दिशा में जाती है और क्या अमेरिकी प्रशासन अपने इन फैसलों पर पुनर्विचार करेगा या नहीं।