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तालिबान से रहम की भीख मांगने काबुल पहुंचा शाहबाज शरीफ का दूत, उधर बॉर्डर पर खौफ के साये में पाकिस्तान आर्मी

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Posted On:Monday, March 24, 2025

अगस्त 2021 में जब तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता संभाली, तो सबसे ज्यादा खुशी पाकिस्तान में देखी गई। इस्लामाबाद में कई विश्लेषक और राजनेता मान रहे थे कि अब अफगानिस्तान पाकिस्तान के लिए एक रणनीतिक सहयोगी बन जाएगा। लेकिन ढाई साल बाद हालात बदल चुके हैं। तालिबान अब पाकिस्तान के लिए एक बड़े सिरदर्द में तब्दील हो गया है। पाकिस्तान आरोप लगा रहा है कि तालिबान न केवल पाकिस्तान के दुश्मनों को अपने देश में शरण दे रहा है, बल्कि वहां से आतंकी हमलों को भी बढ़ावा मिल रहा है।

राजनयिक प्रयासों से संबंध सुधारने की कोशिश

पाकिस्तान के विशेष दूत मुहम्मद सादिक खान हाल ही में अफगानिस्तान की तीन दिवसीय यात्रा पर पहुंचे। उनके इस दौरे का उद्देश्य तालिबान सरकार के साथ बिगड़ते रिश्तों को सुधारना था। यात्रा के दौरान सादिक खान ने कहा कि अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता केवल अफगान जनता ही नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र की सुरक्षा और प्रगति के लिए जरूरी है। लेकिन इस राजनयिक यात्रा के समानांतर पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच सीमा पर तनाव और झड़पें भी जारी रहीं। पाकिस्तानी सेना ने दावा किया कि उसने अफगान सीमा के पास 16 आतंकवादियों को मार गिराया। इससे साफ है कि बातचीत की मेज पर शांति की बातें हो रही थीं, लेकिन जमीन पर गोलियों की आवाजें गूंज रही थीं।

तालिबान पर आतंकवादियों को पनाह देने का आरोप

पाकिस्तान लंबे समय से आरोप लगाता रहा है कि तालिबान ने पाकिस्तान में हमले करने वाले आतंकी संगठनों को अपने देश में सुरक्षित पनाह दी हुई है। विशेष रूप से तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी), जो पाकिस्तान के खिलाफ संघर्ष कर रहा है, उसे तालिबान सरकार द्वारा संरक्षण दिए जाने का आरोप है। पाकिस्तान के लिए सबसे बड़ा झटका तब लगा जब बलूचिस्तान में एक यात्री ट्रेन पर हमला हुआ। इस हमले की जिम्मेदारी बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) ने ली। पाकिस्तानी अधिकारियों का दावा है कि बीएलए के लड़ाके हमले के दौरान अफगानिस्तान में अपने संचालकों से सैटेलाइट फोन के जरिए संपर्क में थे। इस हमले ने पाकिस्तान के भीतर सुरक्षा चिंताओं को और बढ़ा दिया है। पाकिस्तान का कहना है कि तालिबान शासन ने अपनी सीमाओं को आतंकवादियों के लिए एक सुरक्षित पनाहगाह बना दिया है।

काबुल से दोस्ती की कोशिशें लेकिन जमीन पर दरारें गहरी

पाकिस्तान के राजदूत मुहम्मद सादिक खान ने अफगानिस्तान को पाकिस्तान का "सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रीय साझेदार" बताया। उन्होंने यह भी कहा कि दोनों देशों को आर्थिक विकास और स्थिरता के लिए मिलकर काम करना चाहिए। लेकिन हकीकत यह है कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच विश्वास की दीवार दरक चुकी है। सीमा पर झड़पें, घुसपैठ, और परस्पर आरोप-प्रत्यारोप रिश्तों को लगातार खराब कर रहे हैं। पाकिस्तानी सेना की मीडिया शाखा इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (आईएसपीआर) के अनुसार, 22-23 मार्च की रात पाकिस्तान के उत्तरी वजीरिस्तान जिले में अफगान सीमा से घुसपैठ की कोशिश कर रहे 16 आतंकवादियों को मार गिराया गया। यह घटना बताती है कि पाकिस्तान अपनी सुरक्षा को लेकर कोई ढिलाई बरतने को तैयार नहीं है।

तालिबान का इनकार और अफगानिस्तान का पलटवार

तालिबान सरकार ने पाकिस्तान के आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि अफगानिस्तान अपनी जमीन का इस्तेमाल किसी भी दूसरे देश के खिलाफ नहीं होने देगा। अफगान प्रवक्ता ने कहा,

"हम पाकिस्तान के साथ शांति और दोस्ती चाहते हैं, लेकिन हमें लगातार निशाना बनाया जा रहा है।"

तालिबान का यह बयान उस वक्त आया जब नवंबर 2023 में पाकिस्तान ने अफगान नागरिकों के खिलाफ बड़ा कदम उठाते हुए लाखों अफगान शरणार्थियों को देश से बाहर निकालने का आदेश दिया था। इस फैसले ने दोनों देशों के बीच तनाव को और अधिक बढ़ा दिया। पाकिस्तान का तर्क था कि इन शरणार्थियों के बीच आतंकवादियों की घुसपैठ हो रही है। काबुल का कहना है कि यह कार्रवाई मानवाधिकारों का उल्लंघन है और इससे दोनों देशों के संबंधों में और खटास आएगी।

भविष्य की राह कठिन

आने वाले समय में पाकिस्तान और अफगानिस्तान के रिश्ते किस दिशा में जाएंगे, यह कहना मुश्किल है। पाकिस्तान के लिए तालिबान से अपने हित साधना अब उतना आसान नहीं रह गया, जितना उसे शुरुआत में लगा था। तालिबान अपने फैसलों में स्वतंत्रता दिखा रहा है और पाकिस्तान की रणनीतिक गिनती को चुनौती दे रहा है। पाकिस्तान को अब यह समझ में आने लगा है कि एक कट्टरपंथी और अस्थिर सरकार का पड़ोसी बनना उसके लिए नुकसानदेह है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच यह तनाव नहीं सुलझा, तो पूरा क्षेत्र आतंकवाद, गरीबी और अस्थिरता की नई लहरों का सामना कर सकता है।

निष्कर्ष

तालिबान के अफगानिस्तान की सत्ता में आने पर पाकिस्तान ने जो उम्मीदें बांधी थीं, वे अब हकीकत से काफी दूर नजर आ रही हैं। तालिबान के साथ रिश्तों में आई खटास ने पाकिस्तान की सुरक्षा और कूटनीति दोनों को गहरे संकट में डाल दिया है। अफगानिस्तान को लेकर पाकिस्तान की रणनीति अब नए सिरे से सोचने की मांग करती है। वरना, यह सिरदर्द आने वाले समय में और बड़ा संकट बन सकता है।


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