भंसाली प्रोडक्शंस ने हाल ही में सोशल मीडिया पर एक भावुक वीडियो शेयर किया, जिसके कैप्शन में लिखा था – "वो कहानी में नहीं लिखी गई थी, वो तो कहानी को आगे बढ़ाने वाली ताक़त थी।" इस ट्रिब्यूट में संजय लीला भंसाली की फ़िल्मों की उन महिला किरदारों को सराहा गया है जिन्होंने नकेवल कहानी में अपनी जगह बनाई, बल्कि उसे दिशा भी दी। देवदास से लेकर गंगूबाई काठियावाड़ी तक, इस पोस्ट में प्रियंका चोपड़ा, दीपिकापादुकोण, ऐश्वर्या राय बच्चन, माधुरी दीक्षित, अदिति राव हैदरी और आलिया भट्ट जैसे सितारों की अदाकारी को सलाम किया गया है।
भंसाली को भव्य और भावनात्मक सिनेमा के लिए जाना जाता है, और उनकी फ़िल्मों में महिलाएं अक्सर कहानी का केंद्र रही हैं। बाजीराव मस्तानी मेंकाशीबाई (प्रियंका चोपड़ा) और मस्तानी (दीपिका पादुकोण) सिर्फ प्रेमिकाएं नहीं थीं, बल्कि ऐसी महिलाएं थीं जो वफादारी और आत्मसम्मान केबीच संघर्ष कर रही थीं। पद्मावत में रानी पद्मावती का किरदार नारी सम्मान और साहस का प्रतीक बन गया। वहीं गंगूबाई काठियावाड़ी में आलियाभट्ट की गंगूबाई – एक वेश्यालय संचालिका से सामाजिक कार्यकर्ता बनी महिला – ने दर्शकों और समीक्षकों को अपनी सशक्त प्रस्तुति से प्रभावितकिया।
यह पोस्ट भंसाली की उस सोच को दर्शाता है जिसमें महिलाओं को सिर्फ सहायक किरदार नहीं, बल्कि कहानी की आत्मा के रूप में पेश किया जाताहै। देवदास की पारो और चंद्रमुखी हों या पद्मावत की मेहरूनीसा – भंसाली की महिलाएं समाज के बनाए ढांचे से टकराती हैं और उसकी सीमाओं कोचुनौती देती हैं।
इन फ़िल्मों की भव्यता के साथ-साथ उनका भावनात्मक गहराई वाला चित्रण अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी सराहा गया है। देवदास को जहां बाफ्टा मेंनामांकन मिला और कांस फिल्म फेस्टिवल में प्रदर्शित किया गया, वहीं गंगूबाई काठियावाड़ी ने कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीते।
यह ट्रिब्यूट एक समयानुकूल याद दिलाता है कि भंसाली की सबसे भव्य फ्रेम्स के पीछे वे महिलाएं हैं जिन्होंने न सिर्फ पर्दे पर बल्कि दर्शकों के दिलों मेंभी अपनी मजबूत छाप छोड़ी है।
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