मुंबई, 02 जुलाई, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। थाईलैंड में जारी राजनीतिक संकट के बीच बुधवार को सूर्या जुंगरुंगरेंगकिट को देश का कार्यवाहक प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया। 70 वर्षीय सूर्या ने प्रधानमंत्री पाइतोंग्तार्न शिनवात्रा की जगह ली, जिन्हें संवैधानिक अदालत के आदेश के बाद पद से हटाया गया। सूर्या केवल 24 घंटे के लिए यह जिम्मेदारी संभालेंगे। थाई राजनीति में उन्हें ‘मौसम विज्ञानी’ कहा जाता है, क्योंकि वे हमेशा सत्ता में रहने वाली पार्टी का साथ देते आए हैं। रिपोर्टों के अनुसार, गुरुवार को थाईलैंड में मंत्रिमंडल में बदलाव की संभावना है और गृह मंत्री फुमथम वेचायाचाई को उप प्रधानमंत्री बनाया जा सकता है, जिसके बाद सूर्या का कार्यकाल समाप्त हो जाएगा।
प्रधानमंत्री पाइतोंग्तार्न को उस वक्त पद छोड़ना पड़ा जब उनका कंबोडिया के नेता के साथ बातचीत का एक वीडियो लीक हो गया। इस वीडियो में वे सेना प्रमुख की आलोचना करते हुए नजर आईं और कंबोडिया के नेता को 'चाचा' कहती दिखीं। चूंकि थाईलैंड और कंबोडिया के बीच सीमा विवाद चल रहा है, इसलिए इस बयान को लेकर विपक्ष ने उन पर सेना को कमजोर करने और विदेशी प्रभाव में काम करने के आरोप लगाए। मामला इतना बढ़ा कि गठबंधन के सहयोगियों ने उनका साथ छोड़ दिया और हजारों लोग सड़कों पर उतर आए। अदालत ने उन्हें मंत्री पद की नैतिकता के उल्लंघन का दोषी मानते हुए हटा दिया। थाईलैंड की राजनीति में शिनवात्रा परिवार पिछले दो दशकों से केंद्र में रहा है। 2001 में थाकसिन शिनवात्रा ने प्रधानमंत्री बनकर गरीबों और ग्रामीण तबकों के लिए कई योजनाएं शुरू कीं, जिससे उनकी लोकप्रियता बढ़ी लेकिन शहरी और सैन्य वर्ग उनके खिलाफ हो गया। 2006 में सेना ने तख्तापलट कर उन्हें सत्ता से बाहर कर दिया और उन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया गया। थाकसिन देश से बाहर रहकर भी राजनीति में प्रभाव बनाए रहे और उनके समर्थकों ने 'रेड शर्ट्स' आंदोलन के जरिए सरकारों का विरोध जारी रखा।
2011 में थाकसिन की बहन यिंगलक शिनवात्रा थाईलैंड की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं, लेकिन उन्हें भी 2014 में सत्ता के दुरुपयोग के आरोप में हटाया गया और सेना ने फिर तख्तापलट कर लिया। 2023 में थाकसिन की बेटी पाइतोंग्तार्न ने सत्ता में वापसी की कोशिश की और अगस्त 2024 में प्रधानमंत्री बनीं, लेकिन केवल 10 महीने में उन्हें भी पद से हटा दिया गया। थाईलैंड में शिनवात्रा परिवार ग्रामीण और गरीब तबकों में बेहद लोकप्रिय है, लेकिन देश की राजनीति में सेना और शाही समर्थक शक्तियों का वर्चस्व इतना मजबूत है कि उनकी सरकारें लंबे समय तक टिक नहीं पातीं। बार-बार सत्ता परिवर्तन और राजनीतिक उथल-पुथल ने देश को अस्थिरता की स्थिति में डाल रखा है। शिनवात्रा समर्थकों का मानना है कि लोकतांत्रिक सरकारों को अदालतों और सत्ता तंत्र का दुरुपयोग कर गिराया जाता है, जबकि विरोधी उन्हें भ्रष्टाचार और गलत आर्थिक नीतियों के लिए दोषी ठहराते हैं।