मुंबई, 01 सितम्बर, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। मुंबई में मराठा आरक्षण आंदोलन को लेकर सोमवार को बॉम्बे हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। अदालत ने आंदोलनकारियों की गतिविधियों पर नाराज़गी जताते हुए कहा कि दक्षिण मुंबई में हालात बिगड़ चुके हैं और आम नागरिकों का जीवन प्रभावित हो रहा है। अदालत ने स्पष्ट निर्देश दिया कि आजाद मैदान को छोड़कर शहर की सभी सड़कों को मंगलवार दोपहर तक खाली कराया जाए। जस्टिस रवींद्र घुगे और जस्टिस गौतम अनखड़ की खंडपीठ ने कहा कि आंदोलन अब शांतिपूर्ण नहीं रह गया है। अदालत ने इस बात पर आपत्ति जताई कि हाईकोर्ट की इमारत को आंदोलनकारियों ने चारों तरफ से घेर लिया है। यहां तक कि जजों और वकीलों के प्रवेश द्वार भी बंद कर दिए गए हैं और जजों की कारों को रोक दिया गया। अदालत ने टिप्पणी की कि पूरा शहर ठप हो गया है और गणेश उत्सव के समय ऐसा माहौल बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
राज्य सरकार को अदालत ने निर्देश दिया कि सीएसटी, मरीन ड्राइव, फ्लोरा फाउंटेन समेत दक्षिण मुंबई के प्रभावित इलाकों से प्रदर्शनकारियों को तुरंत हटाया जाए। कोर्ट ने सरकार से यह भी कहा कि अगर और लोग मुंबई की ओर बढ़ने की कोशिश करें तो उन्हें रोकने के लिए ज़रूरी कदम उठाए जाएं। राज्य के सरकारी वकील वीरेंद्र सराफ ने अदालत को बताया कि आजाद मैदान में आंदोलन की अनुमति केवल 29 अगस्त तक ही दी गई थी। इसके बावजूद मनोज जरांगे और उनके समर्थकों ने तय शर्तों का उल्लंघन किया। अदालत ने यह भी कहा कि पुलिस को दिया गया जरांगे का आश्वासन कि वह नियमों का पालन करेंगे, केवल दिखावे के लिए था।
आजाद मैदान में 29 अगस्त से भूख हड़ताल पर बैठे मनोज जरांगे अब पानी भी नहीं पी रहे हैं। उनका कहना है कि मराठा समुदाय को ओबीसी श्रेणी के तहत शिक्षा और नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण मिलना चाहिए। समर्थकों की संख्या बढ़ने से सीएसएमटी और आसपास का इलाका जाम हो गया और पुलिस को उन्हें समझाने में खासी दिक्कत आई। हालात को काबू में रखने के लिए सीआरपीएफ, सीआईएसएफ और रैपिड एक्शन फोर्स के जवानों के साथ मुंबई पुलिस के दो हजार से ज्यादा कर्मियों को तैनात किया गया है। जरांगे इससे पहले भी कई बार इसी मुद्दे पर अनशन कर चुके हैं। अगस्त 2023 में जालना जिले के अपने गांव अंतरवाली साठी से उन्होंने पहली बार भूख हड़ताल शुरू की थी। तब से यह सातवां अनशन है। जनवरी में भी उन्होंने छठे दिन भाजपा विधायक सुरेश धास के हस्तक्षेप के बाद अनशन तोड़ा था। हालांकि, मई 2021 में सुप्रीम कोर्ट पहले ही यह साफ कर चुका है कि 50 प्रतिशत सीमा से ऊपर आरक्षण का कोई संवैधानिक आधार नहीं है और मराठा आरक्षण का प्रावधान रद्द कर दिया था। इसके बावजूद 2024 विधानसभा चुनाव से पहले इस मुद्दे पर राज्य की राजनीति गरमाई हुई है।