उपराष्ट्रपति चुनाव 2025 में अचानक नया मोड़ आ गया है। ओडिशा की बीजू जनता दल (BJD), तेलंगाना की भारत राष्ट्र समिति (BRS) और पंजाब के शिरोमणि अकाली दल (SAD) ने चुनाव प्रक्रिया का बहिष्कार करने का फैसला किया है। इन तीनों दलों के इस फैसले ने चुनावी समीकरण को पूरी तरह से बदल दिया है और मुकाबले को बेहद दिलचस्प बना दिया है।
गौरतलब है कि इन तीनों क्षेत्रीय दलों के पास कुल 12 सांसद हैं। इनके बहिष्कार के बाद अब कुल 781 में से सिर्फ 769 सांसद ही वोट डालेंगे। इसका सीधा असर उपराष्ट्रपति चुनाव में जीत के लिए आवश्यक बहुमत पर पड़ा है। पहले जहां 391 वोटों की जरूरत थी, अब बहुमत का आंकड़ा घटकर 386 रह गया है।
एनडीए की बढ़ी ताकत
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के पास पहले से ही 425 सांसदों का समर्थन था। इसके साथ ही आंध्र प्रदेश की वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के 11 सांसदों ने भी एनडीए उम्मीदवार सी.पी. राधाकृष्णन को समर्थन देने की घोषणा की है। इस तरह राधाकृष्णन को कुल 436 सांसदों का समर्थन प्राप्त है, जो बहुमत से कहीं अधिक है।
क्रॉस वोटिंग की संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए भी राधाकृष्णन की जीत लगभग तय मानी जा रही है। विपक्षी गठबंधन इंडिया (INDIA) और कांग्रेस के पास संयुक्त रूप से 324 सांसद हैं, लेकिन अब उनके सामने एकजुटता बनाए रखना चुनौतीपूर्ण हो गया है।
विपक्ष का उम्मीदवार: सुदर्शन रेड्डी
विपक्षी गठबंधन ने इस चुनाव में वरिष्ठ नेता सुदर्शन रेड्डी को उम्मीदवार बनाया है। वे लंबे समय से संसद में सक्रिय हैं और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर मुखर रहे हैं। हालांकि, मौजूदा समीकरणों को देखते हुए उनकी जीत की संभावना कम होती जा रही है।
जगदीप धनखड़ के इस्तीफे से खाली हुआ पद
यह चुनाव इसलिए करवाया जा रहा है क्योंकि पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने 21 जुलाई 2025 को स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अगले दिन 22 जुलाई को उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया था। धनखड़ का कार्यकाल अगस्त 2027 तक था, लेकिन समय से पहले पद रिक्त होने के कारण चुनाव की आवश्यकता पड़ी।
नई राजनीतिक स्थिति
BJD, BRS और SAD के बहिष्कार से यह स्पष्ट हो गया है कि क्षेत्रीय दलों की भूमिका राष्ट्रीय राजनीति में कितनी महत्वपूर्ण होती है। उनके निर्णयों से न केवल संख्या बल प्रभावित होता है, बल्कि राजनीतिक संदेश भी जाता है। बहिष्कार के पीछे की रणनीति अभी साफ नहीं है, लेकिन यह जरूर तय है कि इससे एनडीए को अप्रत्याशित लाभ हुआ है।
अब सबकी निगाहें 17वें उपराष्ट्रपति के रूप में किसे चुना जाएगा, इस पर टिकी हैं। मौजूदा स्थिति को देखकर यह कहा जा सकता है कि सी.पी. राधाकृष्णन की जीत लगभग तय है, लेकिन अंतिम परिणाम 100% मतगणना के बाद ही स्पष्ट होगा।