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‘हम भारत के नागरिक, पाकिस्तान मत भेजो’, बेंगलुरु के परिवार ने सुप्रीम कोर्ट से लगाई गुहार

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Posted On:Friday, May 2, 2025

22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। इस हमले में 26 निर्दोष लोगों की मौत हो गई थी। घटना के बाद केंद्र सरकार ने देश की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता पर रखते हुए आतंकी नेटवर्क पर कार्रवाई और विदेशी नागरिकों की जांच तेज कर दी। इसी कड़ी में भारत सरकार ने उन पाकिस्तानी नागरिकों को देश छोड़ने का आदेश दिया, जो लंबे समय से भारत में रह रहे थे, लेकिन उनकी नागरिकता या दस्तावेज संदिग्ध थे।

सरकार द्वारा तय की गई भारत छोड़ने की समय-सीमा समाप्त हो चुकी है और अब पुलिस और खुफिया एजेंसियों ने ऐसे पाकिस्तानी नागरिकों की डिपोर्टेशन प्रक्रिया शुरू कर दी है। इस बीच बेंगलुरु में रह रहे एक परिवार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है, जिसमें उन्होंने दावा किया है कि वे भारतीय नागरिक हैं, न कि पाकिस्तानी

🇮🇳 बेंगलुरु के परिवार का दावा: "हम भारतीय नागरिक हैं"

याचिकाकर्ता का जन्म पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) के मीरपुर में हुआ था। परिवार का कहना है कि वे 1997 में मीरपुर छोड़कर श्रीनगर आए और यहीं बस गए। उन्होंने श्रीनगर में स्कूली पढ़ाई पूरी की और 2009 में उच्च शिक्षा के लिए बेंगलुरु आ गए।

याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में यह भी बताया कि परिवार के पास गृह मंत्रालय द्वारा जारी वैध भारतीय पासपोर्ट हैं। इसके अलावा उनके पास आधार कार्ड और पैन कार्ड जैसे दस्तावेज भी हैं।

सरकार का दावा: वीज़ा अवधि खत्म, देश छोड़ो

सरकारी सूत्रों के अनुसार, बेंगलुरु का यह परिवार पाकिस्तानी वीजा पर 1997 में भारत आया था और वीज़ा समाप्त होने के बाद भी यहीं रह गया। विदेशियों के क्षेत्रीय अधिकारी (FRO) ने इसे अवैध प्रवास का मामला मानते हुए डिपोर्टेशन की प्रक्रिया शुरू की।

हालांकि, याचिकाकर्ता का दावा है कि उन्होंने कभी पाकिस्तानी वीजा पर भारत में प्रवेश नहीं किया, और वे कभी पाकिस्तान के नागरिक नहीं रहे। उन्होंने खुद को भारत का ही नागरिक बताया है।

परिवार को हिरासत में लेने का आरोप

याचिका में आरोप लगाया गया है कि 29 अप्रैल को सुबह 9 बजे जम्मू-कश्मीर पुलिस ने याचिकाकर्ता के परिवार के सदस्यों—माता-पिता, बहन और छोटे भाई को गिरफ्तार किया। इसके बाद 30 अप्रैल को उन्हें भारत-पाकिस्तान बॉर्डर की ओर ले जाया गया, और डिपोर्ट करने के लिए मजबूर किया गया।

याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि परिवार के 6 सदस्य आधार कार्ड और पैन कार्ड जैसे भारतीय दस्तावेजों के धारक हैं, फिर भी उन्हें निर्वासित किया जा रहा है, जो अनुचित और संविधान के खिलाफ है।

सुप्रीम कोर्ट में उठाया गया सवाल

परिवार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में न्यायिक हस्तक्षेप की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि अगर व्यक्ति के पास भारतीय पासपोर्ट और वैध दस्तावेज हैं, तो उसे पाकिस्तानी नागरिक बताकर निर्वासित नहीं किया जा सकता।

यह मामला न केवल नागरिकता की संवैधानिक व्याख्या से जुड़ा है, बल्कि यह यह भी दिखाता है कि कैसे आतंकी हमलों के बाद प्रवासन और राष्ट्रीय सुरक्षा की बहस फिर से ज़ोर पकड़ रही है।

सरकार का पक्ष: सुरक्षा सर्वोपरि

सरकार का मानना है कि आतंकी हमले के बाद देश में रह रहे सभी विदेशी नागरिकों की गहन जांच आवश्यक है। जो लोग वीज़ा नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं या संदिग्ध गतिविधियों में शामिल हैं, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी।

हालांकि, बेंगलुरु वाले केस में सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई और निर्णय से यह तय होगा कि दस्तावेजों और पहचान के बावजूद किसी परिवार को निर्वासित किया जा सकता है या नहीं।

निष्कर्ष: आतंकवाद बनाम मानवाधिकार

यह मामला एक संवेदनशील और जटिल संघर्ष को उजागर करता है—एक तरफ राष्ट्रीय सुरक्षा, दूसरी तरफ व्यक्तिगत अधिकार और नागरिकता का कानूनी आधार। सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस पर मिसाल कायम कर सकता है कि किस आधार पर किसी व्यक्ति को "विदेशी" माना जाए, खासकर तब जब उसके पास भारतीय दस्तावेज हों।

आगे देखना होगा कि कोर्ट इस याचिका पर क्या रुख अपनाता है और क्या ऐसे मामलों में राष्ट्रीय सुरक्षा और व्यक्तिगत अधिकारों के बीच कोई संतुलन संभव है?


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