राष्ट्रीय मिति पौष 16, शक संवत 1946 पौष शुक्ल, सप्तमी, सोमवार, विक्रम संवत् 2081। सौर पौष मास प्रविष्टे 23, रज्जब 05, हिजरी 1446 (मुस्लिम) तदनुसार अंग्रेजी तारीख 06 जनवरी सन् 2025 ई॰। सूर्य उत्तरायण दक्षिण गोल, शिशिर ऋतुः। राहुकाल प्रातः 07 बजकर 30 मिनट से 09 बजे तक। सप्तमी तिथि सायं 06 बजकर 24 मिनट तक उपरांत अष्टमी तिथि का आरंभ। उत्तराभाद्रपद नक्षत्र सायं 07 बजकर 07 मिनट तक उपरांत रेवती नक्षत्र का आरंभ। परिधि योग अर्धरात्रोत्तर 02 बजकर 05 मिनट तक उपरांत शिव योग का आरंभ। वणिज करण सायं 06 बजकर 24 मिनट तक उपरांत बव करण का आरंभ। चंद्रमा दिन रात मीन राशि पर संचार करेगा। आज के व्रत त्योहार मार्तण्ड सप्तमी, श्री गुरु गोबिंद सिंह जयंती।
श्री सर्वेश्वर पञ्चाङ्गम्
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धर्मो रक्षति रक्षितः पंचांग- 06.01.2025
युगाब्द - 5125
संवत्सर - कालयुक्त
विक्रम संवत् -2081
शाक:- 1946
ऋतु- शिशिर __ उत्तरायण
मास - पौष _ शुक्ल पक्ष
वार - सोमवार
तिथि_सप्तमी 18:22:59
नक्षत्र उत्तरभाद्रपद 19:05
योग परिघ 26:03:57*
करण गर 07:19:32
करण वणिज 18:22:59
करण विष्टि भद्र 29:25:10
चन्द्र राशि - मीन
सूर्य राशि - धनु
🚩🌺 आज विशेष 🌺🚩
✍️ गुरु गोविन्द सिंह जयंती
- भद्रा 18/24 से 29/25 तक
🍁 अग्रिम (आगामी) पर्वोत्सव 🍁
🔅 दुर्गाष्टमी
. 07 जनवरी 2025
(मंगलवार)
🔅 पुत्रदा एकादशी
. 10 जनवरी 2025
(शुक्रवार)
🔅 प्रदोष व्रत
. 11 जनवरी 2025
(शनिवार)
🔅 सत्य पूर्णिमा व्रत
. 13 जनवरी 2025
(सोमवार)
🕉️🚩 यतो धर्मस्ततो जयः🚩🕉️
💐एक निष्ठा, सबका वंदन💐
एक दिन, एक राहगीर एक तपस्वी ऋषि के आश्रम में पहुंचा। ऋषिवर को प्रणाम करने के बाद दोनों के बीच वार्ता आरंभ हुई। राहगीर: "हे देव! मैं बड़ी उलझन में हूं। समझ नहीं आता कि किसकी पूजा करूं और किसकी नहीं। मेरा मन कभी इधर दौड़ता है, तो कभी उधर। मुझे डर लगता है कि यदि एक को पूजूं तो कहीं दूसरा नाराज़ न हो जाए। क्या किसी एक को चुनना अनिवार्य है?" ऋषिवर: "वत्स, तुम्हारा प्रश्न बहुत सुन्दर है। यह उलझन जीवन में अनेक लोगों को आती है, और यह स्वाभाविक है।"
राहगीर: "क्या आपके जीवन में भी ऐसी उलझन आई थी?" ऋषिवर: "हां, बिल्कुल। मैं भी इस द्वंद्व से गुजरा हूं। एक बार, गुरुकुल में मेरे और एक अन्य शिष्य के सामने ऐसी ही स्थिति आई। हमारे गुरुदेव ने हमें 7 दिन का समय दिया और आदेश दिया, '50 फुट गहरा गड्ढा खोदकर जो पानी निकले, उसमें से एक लोटा जल लेकर आओ।' हम दोनों को अलग-अलग दिशाओं में भेज दिया गया।
सात दिन बाद जब हम लौटे, तो मेरे मित्र का लोटा जल से भरा था, जबकि मेरा खाली। गुरुदेव ने मुझसे पूछा, तो मैंने कहा, 'गुरुदेव, मैंने अलग-अलग स्थानों पर 100 फुट गड्ढे खोद डाले, पर पानी नहीं मिला।' गुरुदेव मुस्कुराए और बोले, 'वत्स, तुमने दस स्थानों पर अपनी ऊर्जा व्यर्थ की, इसलिए सफलता नहीं मिली। तुम्हारे मित्र ने एक ही स्थान पर पूरी निष्ठा से प्रयास किया और उसे 50 फुट पर ही पानी मिल गया।'"
गुरुदेव ने समझाया: **"सारा संसार एक ही परम शक्ति का रचाया हुआ है। सब उसी की माया है। अलग कोई नहीं है। लेकिन अन्तर्मन में एक छवि आवश्यक है। जब आंखें बंद करो तो बस एक ही छवि दिखनी चाहिए।
आदर सबका करो, किसी का अनादर मत करो। लेकिन निष्ठा एक में होनी चाहिए। उदार बनो, संकीर्ण नहीं, क्योंकि उदारता ही जीवन है और संकीर्णता मृत्यु। जैसे अर्जुन को अपने लक्ष्य पर केवल पक्षी की आंख दिखती थी, वैसे ही तुम्हारा ध्यान एक ही ईष्ट पर केंद्रित होना चाहिए।
राहगीर: "गुरुदेव, मुझे किसे अपने अन्तर्मन में बिठाना चाहिए?" गुरुदेव: "वत्स, इसके लिए तू स्वतंत्र है। जो तुझे सबसे अधिक प्रिय हो, जो छवि तुम्हें आंखें बंद करने पर सहज ही दिखे, उसे ही अपने अन्तर्मन में स्थान दे। परंतु याद रहे, आदर सबका करना, क्योंकि सब एक ही परम शक्ति की माया है।"" राहगीर: "हे गुरुवर, कोटि-कोटि प्रणाम। अब मुझे अपने जीवन की दिशा मिल गई।"
सीख:
"प्रेम गली अति सांकरी, जा में दो न समाए।
एक साधे सब सधे, सब साधे सब जाए।"
एक निष्ठा के साथ अपने ईष्ट की परम आदर के साथ साधना करें, पूजा अर्चना करें, भक्ति करें लेकिन उदारता से सभी का सम्मान करना न भूलें।
जय जय श्री सीताराम
जय जय श्री ठाकुर जी की
(जानकारी अच्छी लगे तो अपने इष्ट मित्रों को जन हितार्थ अवश्य प्रेषित करें।)
ज्यो.पं.पवन भारद्वाज(मिश्रा) व्याकरणज्योतिषाचार्य
पुजारी -श्री राधा गोपाल मंदिर, (जयपुर)