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Baichung Bhutia Birthday: आखिर कैसे एक गरिब परिवार से निकलकर भारतीय फुटबॉल को नए सिरे तक पहुंचाया, बदला भारत में फुटबाल का चेहरा

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Posted On:Friday, December 15, 2023

बाइचुंग भूटिया का जन्म 15 दिसम्बर, 1976 को गंगटोक, सिक्किम में हुआ था। ये भारत के प्रसिद्ध फ़ुटबॉल खिलाड़ियों में से एक हैं। 1999 में ‘अर्जुन पुरस्कार’ जीतने वाले बाइचुंग भूटिया अपने प्रशंसकों के बीच अंतरराष्ट्रीय फ़ुटबॉल क्षेत्र में भारतीय फ़ुटबॉल टीम के ‘टार्च बियरर’ अर्थात् मार्गदर्शक के नाम से जाने जाते है। वह भारतीय फ़ुटबॉल के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं, उनका खेलने का अलग अंदाज़है, उनमें उत्तम दर्जे की स्ट्राइक करने की क्षमता है। वह वास्तव में अन्तरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी हैं। वह भारत के पहले फ़ुटबॉल खिलाड़ी है, जिन्हें इंग्लिश क्लब के लिए खेलने के लिए आमंत्रित किया गया था, तो आईये जाने इनके बारे में विस्तार से

बाइचुंग भूटिया का परिचय

बाइचुंग भूटिया ने सर्वप्रथम 11 वर्ष की आयु में ताशी नांगियाल अकादमी, गंगटोक में भाग लेने के लिए साई स्कालरशिप जीती। उनकी उच्चतर माध्यमिक शिक्षा ताशी नांगियाल से हुई। उन्होंने सिक्किम में अनेक स्कूल व क्लब प्रतियोगिताओं में बचपन से ही हिस्सा लिया। 1991 में सुब्रोतो कप में किया गया उनका अच्छा प्रदर्शन उन्हें प्रकाश में लाया और उन्हें आगे बढ़ने का मौका मिला। इस खेल में उन्हें सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी घोषित किया गया।

बाइचुंग भूटिया का कॅरियर

उनका खेलने का उच्च स्तर तब पता लगा, जब वह ‘सिक्किम गवर्नर कोल्ड कप टूर्नामेंट में 1991 में सिक्किम ब्लूज के सदस्य बने। तब वह मात्र 17 वर्ष के थे, लेकिन पुरुषों की प्रतियोगिता में हिस्सा ले रहे थे। 1993 में बाइचुंग ने मात्र 16 वर्ष की आयु में स्कूल छोड़ दिया और अच्छी व्यावसायिक ट्रेनिंग के लिए ईस्ट इंडिया क्लब में शामिल हो गये। 1995 में बाइचुंग ने जे.सी.टी. मिल्स, फगवाड़ा की टीम में शामिल होने का फैसला लिया और उनका यह निर्णय सही साबित हुआ, जब इस टीम ने इस वर्ष का राष्ट्रीय फ़ुटबॉल लीग मैच जीत लिया। बाइचुंग इस लीग मैच में सबसे बड़े स्कोरर थे। अत: उनका चयन ‘नेहरू कप’ में खेलने के लिए भी आसानी से हो गया।

संतोष ट्राफी के वक्त वह 5 वर्ष तक बंगाल टीम के सदस्य रहे। 1989-1999 में वह ईस्ट बंगाल क्लब के कैप्टेन बने। उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व प्रि-ओलंपिक, विश्व के क्वालीफाइंग मैचों में, नेहरू कप, एशियन खेलों में तथा सैफ खेलों में किया है। 1999 में उन्हें वर्ष का सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी घोषित किया गया था। 1996 में भी बाइचुंग भूटिया को ‘वर्ष का भारतीय खिलाड़ी’ चुना गया था। भूटिया ने अन्य अनेक पुरस्कार भी प्राप्त किए हैं।

1997 में वह पुन: ईस्ट बंगाल टीम में वापस आ गये और 1998-1999 के लिए टीम के कप्तान बना दिये गए। बाइचुंग ने 35 से अधिक गोल दागे हैं और इस प्रकार अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय खेल को नई दिशा प्रदान की है। 1999 में वह ”बरी फ़ुटबॉल कप” खेलने के लिए मानचेस्टर, इंग्लैंड के लिए भी रवाना हुए थे। 2002 में बाइचुंग भारत लौट आये और एक वर्ष के लिए मोहन बागान में शामिल हो गए। एक वर्ष बाद वह पुन: ईस्ट बंगाल क्लब में शामिल हुए और उस टीम को एशियन कप क्लब चैंपियनशिप जीतने में सहायता की। तभी उन्हें मलेशिया के चैंपियनशिप क्लब, एफ सी का न्योता आया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया और अगस्त से अक्टूबर, 2003 तक वह उनके साथ रहे। नवम्बर, 2003 में भूटिया ने एडिडास इंडिया मार्केटिंग प्रा. लि. के साथ एक डील पर हस्ताक्षर किए, जिससे उन्होंने उस कंपनी को प्रोमोट किया।

भारतीय बैकहम

2004 में बाइचुंग ने एक समाचार पत्र को साक्षात्कार दिया। उनसे पूछा गया कि "जब आपको भारतीय बैकहम[2] कहा जाता है तो आपको कैसा लगता है" तो उन्होंने "कहा यदि मुझे कोई भारत का बेकहम बुलाता है तो निश्चय ही मुझे बहुत अच्छा लगता है।" बाइचुंग से उनके टैम्पर के बारे में पूछा गया कि क्या वह जल्दी ही क्रोधित हो जाते हैं और वह आखिरी बार कब गुस्सा हुए थे तो वह बोले- "मैं बहुत ही शान्त इंसान हूं, इसलिए मुझे गुस्सा बहुत कम आता है। मुझे याद नहीं कि कब मैं गुस्सा हुआ था।" बाइचुंग को फ़ुटबॉल प्रेमियों के बीच ‘सैक्स सिंबल’ कहा जाता है। इस बारे में प्रतिक्रिया जताते हुए उन्होंने कहा था- "किसी के ऐसा कहने पर मुझे कुछ बुरा नहीं लगता।"

बाइचुंग भूटिया की उपलब्धियां

भारतीय फ़ुटबॉल टीम में फारवर्ड के स्थान पर खेलने वाले बाइचुंग की मुख्य उपलब्धियां इस प्रकार हैं-

  • सुब्रोतो कप का वह सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी बना।
  • 1997 में जे.सी.टी. के प्रथम राष्ट्रीय लीग मैच के विजेता। इसमें सर्वाधिक स्कोर बाइचुंग का रहा।
  • 1999 में सैफ (SAFF), नेपाल में विजेता, सर्वाधिक स्कोर।
  • 1999 में सैफ (SAFF), गोवा में विजेता, सर्वाधिक स्कोर।
  • मई, 1999 में माह के एशियाई खिलाड़ी घोषित (प्लेयर आफ द मंथ)।
  • 1999 में ‘अर्जुन पुरस्कार’ से सम्मानित।
  • 1995 में नेहरु कप टूर्नामेंट में भारत के लिए गोल दागने वाला सबसे कम उम्र का खिलाड़ी बना। यह मैच उज्बेकिस्तान के विरुद्ध खेला गया।
  • 1995 से कलकत्ता सुपर डिवीजन का सर्वश्रेष्ठ-खिलाड़ी घोषित। इसमें वह टॉप स्कोरर रहा।
  • 1999 में बाइचुंग वर्ष का सर्वश्रेष्ठ भारतीय खिलाड़ी घोषित।
  • 1999 में सिक्किम राज्य पुरस्कार दिया गया।
  • अक्टूबर, 1999 के फ़ुटबॉल लीग में खेलने वाला भारत में जन्मा प्रथम भारतीय खिलाड़ी।
  • अप्रैल, 2000 के फ़ुटबॉल लीग में स्कोर बनाने वाला भारत में जन्मा प्रथम भारतीय खिलाड़ी बना।


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