अटल बिहारी वाजपेई एक व्यक्ति नहीं...एक भावुक और मुखर विचारक का नाम है, जिनसे देश की जनता, देश के राजनेता, देश के कवि, देश के पत्रकार लेते रहेंगे रोशनी। समय पर। वाजपेयी एक प्रभावशाली राजनेता थे...जो न सिर्फ भारतीय राजनीति के शिखर पर पहुंचे बल्कि चक्रवर्ती राजा की तरह अपने अनोखे अंदाज से विपक्ष और आम आदमी के दिलों पर भी राज किया। वो शब्दों के जादूगर थे... हर बात सोच-समझकर कहते थे.
मौत से ठन गई!
जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा ज़िंदगी से बड़ी हो गई
मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
ज़िंदगी-सिलसिला, आज-कल की नहीं
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ,
लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ?
25 दिसंबर को अटल बिहारी वाजपेयी का जन्मदिन है...अगर वो इस दुनिया में होते...तो अपना 99वां जन्मदिन मनाते. लेकिन, संसद के शीतकालीन सत्र में जो तस्वीरें देखने को मिलीं...जिस तरह से लोकसभा और राज्यसभा के 146 सांसदों को सस्पेंड किया गया...जिस तरह से सड़क से लेकर सदन के अंदर तक हंगामा हुआ...जिस तरह से सत्ता पक्ष के बीच रिश्ते बिगड़ गए और पार्टी तनावग्रस्त थी। संसदीय लोकतंत्र में विपक्ष एक नए स्तर पर तब्दील हो चुका है...उसे संपूर्णता में परिभाषित करने का प्रयास...इसमें आजाद भारत की संसदीय राजनीति के हर दौर को देखने वाले अटल जी अपनी भावनाओं को कविताओं के माध्यम से जरूर व्यक्त करते थे...उनमें से एक थे... भारतीय राजनीति के युग का एक ऐसा पुरुष...जिसने हमेशा यही किया। उन्होंने जो महसूस किया वह भारत के लिए सही था... जो उन्होंने महसूस किया वह भारतीयों के लिए सही था... जो उन्होंने महसूस किया वह भारत की हजारों वर्षों से चली आ रही परंपराओं को पोषित करने के लिए सही था। वर्षों का...जिसमें उन्होंने विश्व बंधुत्व के सूत्र को मजबूत होते देखा। अटल जी ने आजाद भारत के हर बदलते रंग को देखा...लोगों की चाल और चेहरे में आ रहे बदलावों को भी करीब से महसूस किया।
आदमी न ऊंचा होता है, न नीचा होता है,
न बड़ा होता है, न छोटा होता है।
आदमी सिर्फ आदमी होता है।
पता नहीं, इस सीधे-सपाट सत्य को
दुनिया क्यों नहीं जानती है?
और अगर जानती है,
तो मन से क्यों नहीं मानती
अटल ने किस तरह के भारत का सपना देखा था?
राजनीति में मर्यादाओं का विघटन देखा गया...लेकिन, मतभेदों को कभी भी मतभेदों में बदलने नहीं दिया गया...वे भारत की आदर्शवादी राजनीति के अंतिम स्तंभ की तरह हैं...जिसके बाद प्रतिस्पर्धी राजनीति का दौर शुरू हुआ जिसमें मर्यादाएं लक्ष्मण रेखा थीं। मिटा दिया गया. जा रहा है सामाजिक ताने-बाने में दरारें और अविश्वास की खाई भी चौड़ी हो गई...कहीं जाति के नाम पर...कहीं पंथ के नाम पर...कहीं वर्ग के नाम पर। ऐसे में अटलजी के जन्मदिन के मौके पर यह समझना जरूरी है कि उन्होंने किस तरह के भारत का सपना देखा था... उन्होंने जीवन भर किस तरह की राजनीति की... किस तरह के समरस समाज की कल्पना उनके मन में थी? अपने भाषणों की तरह अटलजी की कविताएं भी लोगों से सीधा संवाद करती थीं...सीधा संदेश देती थीं...ऐसे में आज हम अटलजी की कविताओं के जरिए उनकी भारत भक्ति को समझने की कोशिश करेंगे।
धरती को बौनों की नहीं,
ऊँचे कद के इंसानों की जरूरत है।
इतने ऊँचे कि आसमान छू लें,
नये नक्षत्रों में प्रतिभा की बीज बो लें,
किन्तु इतने ऊँचे भी नहीं,
कि पाँव तले दूब ही न जमे,
कोई काँटा न चुभे,
कोई कली न खिले।
न वसंत हो, न पतझड़,
हो सिर्फ ऊँचाई का अंधड़,
मात्र अकेलेपन का सन्नाटा।
मेरे प्रभु !
मुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देना,
ग़ैरों को गले न लगा सकूँ,
इतनी रुखाई कभी मत देना।
अटल की 'भारत के प्रति समर्पण' और जुनून को सलाम
अटल बिहारी वाजपेई की संसदीय राजनीति कई दौर से गुजरी... उन्होंने पंडित जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और सोनिया गांधी की राजनीति को करीब से देखा... उन्होंने अपने संसदीय जीवन का ज्यादातर हिस्सा विपक्ष की राजनीति में बिताया... वे बखूबी समझते थे. भारत निर्माण में सशक्त विपक्ष का महत्व एवं भूमिका। ऐसे में अटल बिहारी वाजपेयी अपने राजनीतिक जीवन के दौरान कभी नेहरू की तरह संसदीय परंपराओं को आगे बढ़ाते दिखे, तो कभी इंदिरा गांधी की कृपा से कड़े फैसले लेते दिखे... तो कभी राजीव गांधी की तरह विज्ञान और तकनीक को आगे बढ़ाते दिखे. देश वह भारतीय राजनीति के सभी ध्रुवों के बीच ऐसे मिश्रित व्यक्तित्व थे...कि किसी को भी उन्हें स्वीकार करने में कोई झिझक नहीं होती थी। अटलजी का राष्ट्रवाद सबको एकजुट होने की राह दिखाता है...संघर्ष की प्रेरणा देता है। वे राष्ट्रीय संकट के समय कदम से कदम मिलाकर चलने की बात करते हैं... अटलजी का काव्य मन अपने विचारों को शब्दों में व्यक्त करने का अवसर तलाशता रहता था। भले ही कवि का मन क्षणिक परिस्थितियों के अनुरूप अपने भावों को शब्दों के माध्यम से व्यक्त करता हो...लेकिन हर कवि की रचना और शब्द हर समय संसार को अपने तरीके से देखते हैं...उसका अर्थ उभर कर सामने आता है। उसमें भी जब अटलजी जैसा जागरूक राजनीतिज्ञ कवि हो तो बात बहुत आगे तक जाती है।
युवाओं को देश को दिशा देने वाला माना जाता था
अटल जी भारत की चुनौतियों से निपटने के लिए सभी को साथ लेकर चलने में विश्वास रखते थे...उनकी सोच थी कि अनुशासित युवा ही देश को दिशा दे सकते हैं। ऐसे में देश के युवाओं को जोड़ने के लिए वाजपेयी जी का काव्य मन कहता है-
अटल बिहारी वाजपेई देशी माटी के रचयिता थे
भारत जैसे विशाल देश की समस्याओं से लड़ने के लिए किस प्रकार के साहस, त्याग और समर्पण की आवश्यकता है, यह बात वाजपेयी जी भली-भांति समझते थे। इसलिए वह एक मजबूत और आत्मनिर्भर भारत बनाने के लिए ऋषि दधीचि की तरह बनने की प्रेरणा देते हैं...पंडित नेहरू और अटल जी की भारत को लेकर समझ में काफी समानताएं थीं...फर्क सिर्फ इतना था कि पंडित नेहरू की पढ़ाई और लिखाई कहां से हुई ब्रिटेन के हीरो, ट्रिनिटी। कॉलेज और कैम्ब्रिज में आयोजित। पंडित नेहरू का आइडिया ऑफ इंडिया भी विदेशी सोच से प्रभावित था...जबकि, वाजपेयी जी पूरी तरह से देशी मिट्टी में रचे-बसे थे। विभाजन की कीमत पर आजादी मिली... इस तरह अखंड भारत का सपना और अधूरी आजादी का सपना उनकी कविताओं के माध्यम से सामने आया।
(रू-ब-रू से अटल जी की आवाज में निकालेंगे…)
टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर,
पत्थर की छाती में उगा आया नव अंकुर,
झरे सब पीले पात,
कोयल की कुहुक रात,
प्राची के अरुणिम की रेख देख पाता हूँ,
गीत नया गाता हूँ,
टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी,
अंतर की चिर व्यथा पलकों पर ठिठकी,
हार नहीं मानूंगा रार नहीं ठानूंगा,
काल में कपाल पर लिखता मिटाता हूं,
गीत नया गाता हूं
कविताओं से युवाओं को जगाने का प्रयास किया
वाजपेयी जी अपनी कविताओं के माध्यम से बार-बार अखंड भारत की तस्वीर याद दिलाते रहे। उनकी कविताओं से यह भी अहसास हुआ कि पाकिस्तान ने धोखे से जिन इलाकों पर कब्जा कर लिया है...वहां के लोगों के हालात कितने बदतर हैं? ऐसे में कवि वाजपेयी कभी अपनी कविताओं के जरिए देश के युवाओं को जागृत करने का काम करते हैं... कभी भारत को मजबूत बनाने के लिए ऋषि दधीचि की तरह बलिदान का मार्ग दिखाते हैं... तो कभी अखंड भारत के उन हिस्सों की याद दिलाते हैं, जिन्हें शत्रुओं ने धोखे से कब्ज़ा कर लिया है।
अटल जी का राष्ट्रवाद न केवल आदर्शवादी था बल्कि व्यावहारिक भी था। उनका राष्ट्रवाद विश्व बंधुत्व की भावना से परिपूर्ण था... इसमें भारत की सीमा पर काली नजर रखने वालों को मुंहतोड़ जवाब देने की सामग्री भी थी... साथ ही भारत की प्राचीन परंपरा के अनुसार का संदेश भी था. विश्व शांति और सद्भाव. इसलिए प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठते ही अटल जी परमाणु परीक्षण का निर्णय लेते ही पड़ोसी देश पाकिस्तान से रिश्ते सुधारने के लिए बस से लाहौर भी चले जाते हैं। और जब पाकिस्तान कारगिल पर आक्रमण कर देता है...तब वाजपेयी भी सीमाहीन लक्ष्मण रेखा पार कर दुश्मनों को खदेड़ने का फैसला करते हैं. वाजपेयी जी की विदेश नीति जितनी स्पष्ट थी...उनकी कविता पड़ोसी देशों और दुनिया में हथियारों की होड़ पैदा कर हथियारों का सौदा करने वालों को भारत का संदेश भी देती थी। >>
होकर स्वतंत्र मैंने कब चाहा है कर लूं जग को गुलाम?
मैंने तो सदा सिखाया करना अपने मन को गुलाम।
गोपाल-राम के नामों पर कब मैंने अत्याचार किए?
कब दुनिया को हिन्दू करने घर-घर में नरसंहार किए?
कब बतलाए काबुल में जा कर कितनी मस्जिद तोड़ीं?
भूभाग नहीं, शत-शत मानव के हृदय जीतने का निश्चय।
हिंदू तन-मन, हिंदू जीवन, रग-रग हिंदू मेरा परिचय।
कविताओं में विरोधियों के चेहरे उजागर किये गये
अटल जी की इस कविता में पाकिस्तान, चीन और अमेरिका के लिए सीधा संदेश है। वे अंधविश्वासी पड़ोसी पाकिस्तान से कह रहे हैं कि कश्मीर हड़पने की हर साजिश नाकाम होगी... अमेरिकी हथियारों और डॉलर पर भरोसा करना ठीक नहीं है. पंडित नेहरू की तरह वाजपेयी जी भी विश्व शांति के पक्षधर थे... उन्होंने विश्व को मानव विनाश की हथियारों की होड़ से मुक्ति दिलाने का सपना देखा था... ऐसे अटल जी का काव्य मन उन चेहरों को उजागर करता है, जो एक ओर तो अंतरराष्ट्रीय बातें करते हैं मंचों पर शांति की बात करते हैं और दूसरी ओर हथियारों के सबसे बड़े सौदागर बन गये हैं.
यह विश्व के प्रति अटल जी का दृष्टिकोण था...जो उनके प्रधानमंत्री बनने पर भारत की विदेश नीति में स्पष्ट रूप से परिलक्षित हुआ। वह पड़ोसी देशों के साथ बेहतर संबंध चाहते थे... उनका मानना था कि दोस्त बदले जा सकते हैं, पड़ोसी नहीं। इसलिए उनकी कविता आगे बढ़ती है और वे कहते हैं- अटल जी भारत के कोने-कोने से आ रही आवाज़ को समझते थे... कश्मीर से कन्याकुमारी तक और कुरुंग से कच्छ तक लोगों का मूड जानते थे... उनके लिए हिंदुत्व के क्या मायने हैं? कैसे भारत की मिट्टी और हवा ने भी बाहरी लोगों को अपना लिया है. ऐसे अटल जी का कवि रूप विश्व को भारत की भावना से रूबरू कराता है...पड़ोसी देशों के मन की झिझक को दूर करने का प्रयास करता है।
अटल स्वयं को समाज का सेवक मानते थे
अटल जी के व्यक्तित्व का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि वे सभी को साथ लेकर चलने में विश्वास रखते थे... वे स्वयं को समाज का नेता और सेवक मानते थे। उनकी कूटनीति दुनिया को जोड़ने और रिश्तों को फिर से परिभाषित करने में से एक थी...वह सिर्फ पुरानी रेखाओं पर चलने वाले राजनीतिक नेता नहीं थे...वह पुरानी रेखाओं को आगे बढ़ाने और नई रेखाएँ खींचने में माहिर थे। अगर यह कहा जाए कि अटल जी मौजूदा राजनीति के आखिरी राजनेता थे तो गलत नहीं होगा... अटल बिहारी वाजपेई को यह उपाधि इसलिए मिली क्योंकि उन्होंने कभी सही को गलत नहीं कहा... अटल जी हमेशा इस बात का ध्यान रखते थे कि देश - जमुनी तहजीब के लिए क्या जरूरी है? भारत की राजनीतिक संस्कृति और समाज को जोड़ने के लिए जो भी रास्ता उन्हें उचित लगा, वे उस पर आगे बढ़े। राजनीति और समाज के प्रति उनकी समझ की झलक उनकी कविताओं में भी साफ दिखती है।
पंडित नेहरू उनकी वक्तृत्व कला के कायल थे
अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजनीति का वह चेहरा हैं, जिन्होंने आदर्शों से समझौता नहीं किया। वे सबके लिए थे.. सबके लिए। ये भी एक संयोग ही है कि जो शख्स दक्षिणपंथी संघ की नर्सरी से निकलकर संसद की दहलीज तक पहुंचा...उस शख्स के मन में कहीं न कहीं पंडित नेहरू जैसा राजनेता बनने की चाहत थी. अटल जी संसद के भीतर पंडित नेहरू की नीतियों पर सवाल उठाते हैं... तो पंडित नेहरू अपनी वक्तृत्व कला का लोहा मनवाते हैं। अटल जी ने राजनीति के हर उतार-चढ़ाव को बहुत करीब से देखा। उन्होंने तीन बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली...लेकिन सफलता के शिखर पर पहुंचकर भी इंसान के पैर जमीन पर कैसे रहने चाहिए, इसका फलसफा उन्होंने हमारे राजनेताओं को भी सिखाया.
अटल बिहारी हमेशा सबके साथ रहते थे
इस कविता के जरिए वाजपेयी ने भ्रष्ट शासकों के लिए गहरा संदेश छोड़ा है. उन्होंने ऐसे राजनीतिक पारिस्थितिकी तंत्र की वकालत की - जिसमें सत्ता का प्रयोग बहुमत के शासन के बजाय विपक्ष के साथ आम सहमति से किया जाए। अटल जी हमेशा सबके साथ मिलजुल कर रहते थे... उनका व्यक्तित्व कभी भी वैचारिक मतभेद पैदा नहीं करता था... ये उनका चुंबकीय व्यक्तित्व ही था कि अपने समाजवादी और वामपंथी साथियों के साथ भी हास्य में, आंसुओं में, तूफानों में, बलिदानों में, रेगिस्तानों में, अपमान करो, सिर ऊंचा करो, सीना चौड़ा करो, कदम से कदम मिलाकर चलो। वे खुद से भी सवाल करते हैं-
सार्वजनिक सभा में इंदिरा गांधी की आलोचना की गई
यह वाजपेयी के सार्वजनिक जीवन का वह पक्ष है, जिसके कारण भारतीय राजनीति में उनके कद का कोई नेता नजर नहीं आता। यदि उनमें 1962 में चीन युद्ध में भारत की हार के बारे में पंडित नेहरू की नीतियों पर सवाल उठाने का साहस है... तो वे 1971 में पाकिस्तान पर जीत के बाद इंदिरा गांधी की तुलना दुर्गा से करने से नहीं हिचकिचाते। लेकिन जब 1975 में देश में आपातकाल शुरू हुआ...तब इंदिरा सरकार ने अटल बिहारी वाजपेई को भी जेल में डाल दिया...आपातकाल के बाद दिल्ली के रामलीला मैदान में एक सार्वजनिक सभा में अटल जी ने इंदिरा पर कटाक्ष किया...
इसी सार्वजनिक सभा में अटल जी ने आपातकाल के दौरान परिवार नियोजन का समर्थन किया था...लेकिन इसके तरीकों पर सवाल उठाए थे...मतलब अटल जी का विरोध लोगों और विचारों से नहीं बल्कि तरीकों से था...1984 में पंजाब में इंदिरा सरकार का ऑपरेशन ब्लू स्टार जिसका विरोध वाजपेई ने भी किया था. यह भारतीय राजनीति का वह युग था - जब मतभेदों को व्यक्तिगत मतभेद नहीं माना जाता था। राजनीतिक विरोधियों को लोकतंत्र के सहयात्री के रूप में देखा जाता था...लेकिन, जब राजनीति का चरित्र और चेहरा बदलने लगा, तो कवि अटल ने कहा।
अटल बिहारी को मौत का डर भी नहीं सताया
अटल जी में विपरीत परिस्थितियों को अनुकूल बनाने का साहस था... वे मौत से भी लड़ने को तैयार थे। तभी तो किडनी की बीमारी के दौरान उन्हें मौत से डर नहीं लगा...वह बीमारी को हराकर समाज और देश के लिए कुछ करने के इरादे से एक योद्धा की तरह मैदान में लड़े. अटल जी राजनीतिक शिष्टाचार निभाते रहे...शायद इसीलिए राजनीति में उनकी किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. हर बातचीत में शामिल होना, सबका सम्मान करना और सबकी खुशी में शामिल होना वाजपेयी का अद्वितीय व्यक्तित्व था. वह समाज में किसी भी तरह का बंटवारा नहीं चाहते थे... गंगा-जमुनी तहजीब को बढ़ावा देने वाले नेताओं की सूची में वह सबसे चमकीला नाम हैं। एक राजनेता के तौर पर भी और एक कवि के तौर पर भी. ब्रेटिया की मृत्यु में जीवन का अंत नहीं हुआ पूर्ण कहा गया है... 16 अगस्त 2018 को अटल जी ने अंतिम सांस ली और इस दुनिया से चले गए। उन्होंने हर पल को खुलकर जीया... आदर्शों के साथ जीया... दिखावा छोड़ दिया... एक राजनेता जो भी कह सकता था...
एक राजनेता, एक कवि, एक पत्रकार, एक मित्र के रूप में उन्होंने जीवन की हर भूमिका को पूरी शिद्दत से निभाया। वह कहते थे कि मैं चाहता हूं कि मुझे बिना किसी दाग के ले जाया जाए...मेरी मौत के बाद लोग कहेंगे कि मैं एक अच्छा इंसान था जिसने अपने देश और दुनिया को एक बेहतर जगह बनाने की कोशिश की। आज की दुनिया में अटल जी का व्यक्तित्व और राजनीति हर किसी के लिए एक मिसाल है...वह उदार हिंदू धर्म की सबसे स्पष्ट परिभाषा है, जिसमें जाति और धर्म के बावजूद सभी के लिए प्यार और सम्मान था।